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आखिरकार.... सब याद आयेंगे  जब यहां कोई नहीं होगा,

आखिरकार....

सब याद आयेंगे 
जब यहां कोई नहीं होगा, जब दुनिया खाली लगेगी 
जब मंज़र तबाही का होगा, जब सब मुश्किल होगा 

जब बादल आग बन जाएंगे, जब आसमान काले पड़ जाएंगे
जब हम हवाओं में घुल जाएंगे, जब सबकुछ जाता दिखेगा

जब हम बूँदों के बहाव में तैर रहे होंगे 
जब सबकुछ धू-धू कर जल जाएगा, सब याद आयेंगे

आज, तो हम सुन सकते हैं
आज, हम कुछ कह सकते हैं, हम बातें कर सकते हैं
हम आपस में मुस्करा सकते हैं, लेकिन, कल ?

शायद आंखें धुंधली हो जाएं, शायद कान बेअसर लगने लगे
जब मैं कोई दुवा सुन न पाऊँ, जब तुम सामने रहो, मैं देख न पाऊँ

तब मैं तुम्हें मुस्कराते कैसे देखूँगा, कैसे सुनूँगा मैं तुम्हारी प्यारी आवाज

जब सबकुछ बिखर जाएगा, जब कुछ नहिं होगा, कुछ भी नहिं 
मैं उन आसमानों को आखिरी बार देखूँगा, या देखूँगा चारदीवारी में एक छत

ये वो आखिरी पल होगा, इस जिंदगी का 
जिसमें तुम रहे, तुम्हारी मुस्कराहट, तुम्हारी यादें 
यूँ ही खामोशी की तरह बढ़ते हुए, जब सब धुँधला हो जाएगा 

फिर भी तुम्हें देखूँगा, मुस्कराते हुए, 
जब हर जगह सन्नाटा होगा, जब मैं सुन्न होने लगूं
तुम्हें याद करूंगा, तुम्हारा चेहरा, 

इसी सन्नाटे में 
मैं तुम्हें सुनते हुए, तुम्हारा नाम लेते हुए
पहाड़ों में, नदियों के शोर में खो जाऊँगा
फिर भी जब तुम मुझे पुकारोगी, मैं हवाओं में आऊंगा
तुम्हें छु कर वापस चला जाऊँगा....... फिर भी 
आखिरकार, सब अच्छा होगा

©Shivam Veer
  आखिरकार 
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Shivam Veer

New Creator

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