ज़ुबां कहे भी तो किसे सुनाए ग़म, जिस दिल ने जिया है, वही समझे कम। बेनिशान थी आरज़ू, मगर गहरी छाप छोड़ गई, ज़ुबां खामोश रही, मगर दास्तां बोल गई। दिल के अंदर एक कहानी दबी थी, जो न कह सका, वो नरगिस ने सुनाई थी। गहरी छाप थी मोहब्बत की, वक़्त ने छोड़ दी, ज़ुबां की खामोशी में सच्चाई खोल दी। दर्द को छिपाकर, दिल ने उसे सहा, जिसे कह न सका, वही आह में बहा। मौन की गहराई में, दिल की आवाज़ पाई, जो अल्फ़ाज़ न थे, वो खामोशी ने जताई। ©नवनीत ठाकुर #जुबां खामोश थी