पुराने फसाने याद आते हैँ लेकिन रुला भी जाते हैँ ज़माना लौटता तो है पर लम्हे ठहर जाते हैँ उस पंछी की उड़ान देखो उसे कहाँ ले आई है जगह तो नई है पर आशियाने पुराने याद आते हैँ आज हम टूट कर बहुत दिनोबादगले लग रहे है अब हम दोनों को वो पुराने दिन फिर से याद आते हैँ क्या हुआ उन नेकियों का ज़ो गुनाहो क़े नगर मे पल रही थीं कदाचित इसीलिए वहा क़े बाशिंदे गमज़दा दिखते है उदासी है कि मेरे मुक्कुदर से कभी बाहर जा नहीं रही आँख मे आँसू कई बार इसिलए ऑकर चहरा भिगोदेते हैँ ©Parasram Arora पुराने फसाने......