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जबसे मेरी मौन कुटिया मे तुम्हारा ग्रह प्रवेश हुआ

जबसे  मेरी मौन कुटिया मे
तुम्हारा ग्रह प्रवेश हुआ है 
मेरी  प्रतिक्षित घड़ियों के विषाद
का भी  आज समापन हुआ है 
उत्सुकता  अकुलाहट  के अति भार से
जीवन मेरा धन्य हुआ है 
तुम्हारे मधु ताप के स्पर्शो से
मौन जीवव मेरा मुखरित हुआहै 
असमजस  मे विचलित   थीं ज़ो उद्वेलित साँसे. मेरी 
तुम्हारा सानिध्य पाकर  उनकी लय मे भी संतुलन कायम हुआ है

©Parasram Arora ग्रह प्रवेश
जबसे  मेरी मौन कुटिया मे
तुम्हारा ग्रह प्रवेश हुआ है 
मेरी  प्रतिक्षित घड़ियों के विषाद
का भी  आज समापन हुआ है 
उत्सुकता  अकुलाहट  के अति भार से
जीवन मेरा धन्य हुआ है 
तुम्हारे मधु ताप के स्पर्शो से
मौन जीवव मेरा मुखरित हुआहै 
असमजस  मे विचलित   थीं ज़ो उद्वेलित साँसे. मेरी 
तुम्हारा सानिध्य पाकर  उनकी लय मे भी संतुलन कायम हुआ है

©Parasram Arora ग्रह प्रवेश