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शिल्पा झरोखे से झांकते एक पंछी पूछती है समाज की स


शिल्पा झरोखे से झांकते एक पंछी पूछती है
समाज की संस्कृतियां कहां लुप्त हैं आज?
एक वीरान रेगिस्तान मन में एक सवाल सा
क्या पुरानी प्रचीर पे लगी तस्वीर फुदकती है?

सूखे पत्ते नवलेखन के अब मुरझाये से लगते हैं
ह्रदय आहत होता जब,अपने भी पराए लगते है
चुभती है अनवरत चोट मुझे अब तो समाज में
जब समाज की सोच में गंदगी पनपने लगते हैं।।

©Shilpa yadav
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