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सारी रात बनते,बिगड़ते मन के हालात, सोचता रहा मानव

सारी रात बनते,बिगड़ते मन के हालात,
सोचता रहा मानव की संवेदना के बारे में,
पाषाण शिला के समान हो गए जिसके जज्बात,
मर चुकी वेदना,खो चुका ममत्व चेतना,
जड़वत हो चुके मन के लहलहाते वन,
धनवान होता गया धनी,निर्धन और निर्धन
इतनी लालसा,मर रहे प्रियजन,पर उसे चाहिए धन,
मानवता करती क्रूर क्रंदन,चेतन हुआ जड़,जड़ हुआ चेतन,
प्रकृति पुकारती है,सीखो सबक बो अपने आपको संवारती है,
मत बिगाड़ उसका संतुलन 
जड़ को कर चेतन,प्रकृति का कर अनुसरण, जड़ चेतन,
सारी रात बनते,बिगड़ते मन के हालात,
सोचता रहा मानव की संवेदना के बारे में,
पाषाण शिला के समान हो गए जिसके जज्बात,
मर चुकी वेदना,खो चुका ममत्व चेतना,
जड़वत हो चुके मन के लहलहाते वन,
धनवान होता गया धनी,निर्धन और निर्धन
इतनी लालसा,मर रहे प्रियजन,पर उसे चाहिए धन,
मानवता करती क्रूर क्रंदन,चेतन हुआ जड़,जड़ हुआ चेतन,
प्रकृति पुकारती है,सीखो सबक बो अपने आपको संवारती है,
मत बिगाड़ उसका संतुलन 
जड़ को कर चेतन,प्रकृति का कर अनुसरण, जड़ चेतन,
rajeshrajak4763

Rajesh rajak

New Creator