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वो हाथ जो आज कांपने लगे है कभी उन्होंने ही हमे चलन

वो हाथ जो आज कांपने लगे है कभी उन्होंने ही हमे चलना सिखाया था
अपना सब कुछ लुटाकर उन्होंने ही तो हमे उड़ना सिखाया था
खर्च करदी पूरी जवानी अपनी हमारे लिए
और वही कामयाब बेटा बोलता है कि कुछ खास नही किया तुमने तो बस अपना फर्ज निभाया था!!

दो जोड़ी कपड़े में एक बाप ने बिता दिए कई साल
यहां तक कि औलाद की खातिर बेच दी उसने अपनी खाल
और बड़ा होने के बाद बेटा गिरगिट सा एकदम बदल गया
बूढ़ा बाप लगने लगा उसे अब जी का जंजाल!!

लेकिन सुनो ये बर्ताव तुम्हारा सही नही है
माता पिता के सिवा जीवन का कोई आधार नहीं है
और करोगे बुजुर्गो की इज्जत तो तुम्हारा भी सम्मान बढ़ेगा
दादा दादी की सेवा से बढ़कर जीवन में कोई और संस्कार नही है!!

वक्त अभी है प्यारे तुम इतनी बात मेरी मानो
ज्यादा ना उड़ो आसमान में अब जमीं पर वापस आओ
और पकड़ लो उन झुर्रियों भरे हाथो को मजबूती से तुम
करो सेवा बुजुर्गो की अपने और अपना जन्म सुधारो!!

क्यूंकि घर में बैठे बुजुर्ग वटवृक्ष के समान होते है
सदा चाहते है वो भला तुम्हारा और अपना आशीष देते है
बुजुर्गो से ही है मिलती है परवरिश वही तो  हमे अच्छे संस्कार देते है
और जो नही करता सम्मान अपने बुजुर्गो का, खुद भगवान उन पापियों को दुत्कार देते है!!



कवि : इंद्रेश द्विवेदी (पंकज)

©Indresh Dwivedi #बुजुर्गो_का_सम्मान_करो
#pls_like_comment_and_share 
#Follow_me
वो हाथ जो आज कांपने लगे है कभी उन्होंने ही हमे चलना सिखाया था
अपना सब कुछ लुटाकर उन्होंने ही तो हमे उड़ना सिखाया था
खर्च करदी पूरी जवानी अपनी हमारे लिए
और वही कामयाब बेटा बोलता है कि कुछ खास नही किया तुमने तो बस अपना फर्ज निभाया था!!

दो जोड़ी कपड़े में एक बाप ने बिता दिए कई साल
यहां तक कि औलाद की खातिर बेच दी उसने अपनी खाल
और बड़ा होने के बाद बेटा गिरगिट सा एकदम बदल गया
बूढ़ा बाप लगने लगा उसे अब जी का जंजाल!!

लेकिन सुनो ये बर्ताव तुम्हारा सही नही है
माता पिता के सिवा जीवन का कोई आधार नहीं है
और करोगे बुजुर्गो की इज्जत तो तुम्हारा भी सम्मान बढ़ेगा
दादा दादी की सेवा से बढ़कर जीवन में कोई और संस्कार नही है!!

वक्त अभी है प्यारे तुम इतनी बात मेरी मानो
ज्यादा ना उड़ो आसमान में अब जमीं पर वापस आओ
और पकड़ लो उन झुर्रियों भरे हाथो को मजबूती से तुम
करो सेवा बुजुर्गो की अपने और अपना जन्म सुधारो!!

क्यूंकि घर में बैठे बुजुर्ग वटवृक्ष के समान होते है
सदा चाहते है वो भला तुम्हारा और अपना आशीष देते है
बुजुर्गो से ही है मिलती है परवरिश वही तो  हमे अच्छे संस्कार देते है
और जो नही करता सम्मान अपने बुजुर्गो का, खुद भगवान उन पापियों को दुत्कार देते है!!



कवि : इंद्रेश द्विवेदी (पंकज)

©Indresh Dwivedi #बुजुर्गो_का_सम्मान_करो
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