मेरे अंदर का रावण कुम्भकरण दिन रात ही सोता रहता है करने को बहू करम कुकर्म मगर ये मन ही सोता रहता है जगते जतन जुटाते मरते मन सोने को मारता रहता है और तन मन का मैं मानव सब सो सो खोता रहता है ये सुरप नखा सी नींद मेरी बस नाक कटाती रहती है छोड़ दो सारे काम अकारथ सोजा बताती रहती है मेरे मन की नींद मंथरा सबसे छुटाती रहती है इसी दसहरे इसे जला दू बोलो कौन सी लकडी जलती है सोच रहा हूँ जल दू रावण मगर नजर ना पड़ती है Ravan