खिजां से दोस्ती का दम भरते हो और कोशिश चमन लाने की करते हो ये तो वैसा ही है जैसे सहरा मे तुम दरिया का ख्वाब देखते हो ............. ओकात अपनी भूल कर मिज़ाज़ पर. काबू पाने की बात करते हो और माना क़ि तरक्की करके तुम शिखर तक भी पहुंच गए हो पर हंसने का रिवाज़ भी तो तुम भूल गए हो # लघु कविताये......