कवि बन तुम हमेशा अपने दिल क़े मंजर देखते रहे काश किसी दिन बाहर निकल कर हमारे बंजर भीदेख लेते बसंत तो हर वर्ष आता रहा और तुम्हे मदहोश कर गया काश किसी दिन तुम आकरउसहठी पतझर को देख लेते. तन क़े लिए तो न जाने तुमने कितने इंतज़ाम कर लिए कश कभी अपने मन क़े जर्ज़र भी तुमने देख लिए होते तुम्हारे छन्दों की अनुशासनहिंनता श्रोता कई बार देख चुके काश कभी उस भटकी हुई कटी पतंग का दर्द भी तुम देख लेते न जाने कितने सपनो की फसल काट कर तुमने कविता. रचि काश स्वर्णिम संध्या क़े उन उपेक्षित इंद्राधनुशो को भी देख लेते ©Parasram Arora कवि और कविता.......