सड़क:अंजान सफ़र में मेरा हमदर्द जानने चला था इस ज़माने को, कुछ कदम बढ़ाए ही थे घर के बाहर जाने को, किसी ने नहीं थामा हाथ मेरा, पर जो थी पैरों के नीचे वो इस अंजान सफ़र में मेरा हमदर्द बन गई। चलने लगे साथ साथ दिल की बातें करते करते, वो पूछने लगी कहा तक जाओगे इस विशाल दुनियाँ में, मैं हल्के से मुस्कराते बोला-"मौत तक भी अगर तुम साथ हो मेरे।" यूँ ही सवालों का सिलसिला चलता गया, और सफर एक मूक हमसफर से बात करते करते गुज़रता गया। थक कर मैं बैठ गया उसके किनारे, पूछा तुम थकती नहीं चलके हर राही के साथ, वो बोली मैं तो यहि रहती हूँ रुकी, बस चलाए रखती हमसफर का एहसास कराए हर कदम को अपने साथ। मैं भी आश्चर्य चकित हुआ सुनके फ़ेर उसके अल्फाजों का, "कि बात तो सही है स्थिर है यह सड़क तो अपनी जगह, एहसास होता है केवल की चल रही है वो कदम से कदम मिलाए मेरे साथ।" जानकर बारे उसके, उससे मोहब्बत बढ़ने लगी थी, पैरों के नीचे की वो सड़क, दिल में उतरने लगी थी, मंजिल का पता नहीं पर, राह आसान हो रही थी, मायूसी के साथ शुरू हुए इस सफर में, अब अंजान मूक हमसफ़र से मुस्कराहट से बात हो रही थी। मिली मंजिल छूट गया हमसफ़र और बनके रह गई फिर से वो सिर्फ एक सड़क, काश मिले उसे कोई नया मुझ सा मुसाफिर और फिर से मिल जाए इस सुनसान सड़क को हमसफ़र। सीखा मैंने कुछ इस तरह जिंदगी को उससे - जरूरी नहीं मिल जाए कोई जिवित हमसफ़र हर सफ़र मे, कभी बना लिया करो प्रकृति की मूक चीजों को अपना हमदर्द, ग़ज़ल बना लिख देना इन लम्हों को, जो पढ़े कोई तुम्हें तो वो भी ना रहे अकेला जी ले, वो भी समझ मुझे हमसफ़र ,इस सफ़र में। ©Harshu saini सड़क :अंजान सफ़र में मेरा हमदर्द #sadak #harshu_saini #longwritting #Poetry #poetry_voiceofsoul