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कातिल निगाहों को झुका दो, इतराती अदाओं को छुपा दो

कातिल निगाहों को झुका दो, 
इतराती अदाओं को छुपा दो,।
कायल हुस्न के हैं हुजूम यहां, 
खूबसूरत चेहरे को पर्दे में छुपा दो। ।
बेताब है हर शख्स यह फिजां देखने को, 
सब्र छोड़ रहा मौसम यह खिजां देखने को। 
मुराद है हर कोई इस गुलशन का, 
राज इस कहर का तो बता दो। 
जन्नत से आई हूर हो तुम, 
इस जहां की  नूर हो तुम, ।
विचलित हो रहा मन मेरा, 
चाहो तो कब्र पे मुझे पहुंचा दो। ।
written by 
संतोष वर्मा। ।azamgarh वाले 
खुद की जुबानी। ।

©Santosh Verma
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