स्मृतियों के दंश चुभने लगे है अब क्योंकि ज़ो अतीत मे हो चुका है मेरे साथ और ज़ो कुछ मैंने किया था पिछले दिनों मे वो सब अब मै पुनः दोहरा न पाऊंगा न वो सुखद मासूम सा बचपन न वो मधुमय यौवन ही कभी लौट पायेगा फिर से अब तो वार्धकय और प्रौढ़ता का उबाउ उजाला मेरे साथ. साथ चल रहा है ज़ो अंत तक मेरे साथ रहने वाला है सोचता हूँ यमराज कि नगरी मे प्रवेश करने से पहले अपनी बसती के अंतिम दर्शन कर लेता और अपनी भूलो के लिये क्षमा प्रार्थनकर पश्चाताप के दो आसू भी बहा लेता ©Parasram Arora वार्धकय और प्रौढ़ता का उबाऊ उजाला