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रेत के घर बनाते रहते हैं लोग ख़्वाब न जाने क्या-क्

रेत के घर बनाते रहते हैं लोग
ख़्वाब न जाने क्या-क्या सजाते रहते हैं लोग 

ख़बर नहीं होती यहाॅं अगले पल की 
और मनसूबे सालों-साल के बनाते रहते हैं लोग।

ख़ुद की ही ख़्वाहिशों के बोझ तले
ख़ुद ही को दफ़नाते रहते हैं लोग।

सोचते रहते हैं बस माज़ी और मुस्तक़बिल को 
आज में जीना सीखते ही नहीं हैं लोग।

©Sh@kila Niy@z
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#16April24