जिस विचित्रता की मुझे तलाश हैँ वो मेरी कल्पनाओं की सहचरी भी हैँ... और मुझे लगता हैँ उसे मै ढूंढ ही लूँगा कभी न कभी कहीं न कहीं होसकता मुझे वो मिल जाये किसी प्रकाश की ठहरी हुई किरण मे या अंधकार मे किसी नन्हें जुगनू की टिमटीमाती रौशनी मे या किसी उद्वेलित लहर की उफनती झाग मे या किसी बादल से टपकती हुई शीतल बूँद मे.या फिर किसी बरगद की टहनी से बंधे किसी हिंडोले. मे या फिर किसी गली मे भटकते हुए किसी फटेहाल सुदामा के सौंदर्य मे या फिर किसी विहंग के करुण विहाग मे या फिर किसी सुहागन के ललाट पर चमकती हुई उसकी लॉल बिंदी मे ©Parasram Arora विचित्रता क़ि तलाश #Lumi