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पल्लव की डायरी बहके हुये हम ,तन मन गवाँ रहे थे आर्

पल्लव की डायरी
बहके हुये हम ,तन मन गवाँ रहे थे
आर्टिकल चीजो को गले लगाकर
उम्र और सकूँन जीवन का घटा रहे थे
करवटे बदल बदल कर पूरी नींद नही पा रहे थे
देखा देखी संसाधनों में,जीवन घुटा रहे थे
तोड़ दिये सब बन्धन,अब प्रकृति से जुड़ गया हूँ
अधेड़ बुन से मन मुक्त कर लिया है
कूलर ऐसी पंखों का साथ छोड़
बिजली बिलों का शोषण घटा दिया है
आजादी की सांस लेकर
बिस्तर छतों और मैदानों में लगा लिया है
हर  तरह के बिल से छुटकारा पाकर
अपनी कुशलता और मंगल जीवन मे लाऊँगा
                                                                  प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  #kinaara बिलो को छोड़,जीवन मे कुशलता और मंगल पाऊँगा
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