उसकी आवाज़ में ठहराव था, और आंखों में नमी थी बातें कुछ एेसे कहता उम्र के कितने पड़ाव देखें हो जैसे नब्ज़ पकड़ी, आँखें पढ़ी, फ़िर मालूम हुआ मर्ज़ क्या है? कह रहा था,सबकुछ भूला दिया। पर अभी भी बहुत कुछ था, जो भूल नहीं पाया वो। दुर्गा बंगारी ##nojoto#marich-e-ishq##