पुन: कष्ट फिर दे रहा , बालक यह नादान । क्षमा करें गुरुवर इसे , तुम हो कृपानिधान ।।१ अच्छे अब दिखते नहीं , सुनो गाँव के हाल । घर-घर की यह बात है , सुन लो बाबू लाल ।। २ लोग पलायन कर रहे , गाँव छोड़कर आज । जैसे दाने के लिए , उड़े नील तक बाज ।। ३ मातृ-भूमि जननी कहे , सुनो कष्ट के योग । भूल हुई जो गाँव को , छोड़ गये तुम लोग ।। ४ खुश्बू जैसे हींग की , करती है मनुहार । व्यथा हमारी भी सुनो , करती सदा पुकार ।। ५ करो सदा सामर्थ्य भर , जीवन में हर काज । वर्ना इच्छाएँ सखे , करती रहतीं खाज ।। ६ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR पुन: कष्ट फिर दे रहा , बालक यह नादान । क्षमा करें गुरुवर इसे , तुम हो कृपानिधान ।।१ अच्छे अब दिखते नहीं , सुनो गाँव के हाल । घर-घर की यह बात है , सुन लो बाबू लाल ।। २ लोग पलायन कर रहे , गाँव छोड़कर आज । जैसे दाने के लिए , उड़े नील तक बाज ।। ३