तन भी है क्षणभंगुर और ज्ञान भी तो है क्षणभंगुर. है तन चाहे कितना भी फूले फले ज्ञान चाहे कितना भी इतराये जीवन तो दर्पण की छाया मात्र से ज्यादा कोई उपदेश दे नहीं रहा है झूठ को सच का मुखौटा पहना देने से वो सच हो नहीं पायेगा तुष्टि को संतुष्टि से वो तोल नहीं पायेगा हर राग का समापन विराग मे छिपा है लेकिन मूर्ख तो खोखली आसक्ति मे ही जीने का मजा ले रहा है ©Parasram Arora क्षणभंगुर.......