मेरा दुखद अंत आज नहीं, पहले का मै निर्जीव सा विचलित, देख रहा था लोगो की भीड़, हर एक की वो टूटी हुई रीढ़, अफसोश था, मगर बेसहारा था इतनी भीड़ में भी, न कोई हमारा था मैंने कुछ पल समझाया बावले दिल को, मगर ये भी औरो की तरह हठी निकला, आँखों से धाराएं यूँ बह रहे थे, जैसे हिमालय से बर्फ, नदियों का प्रवाह हो पिघला, मेरे आसुओं को किसी ने पोंछा नहीं, एक पल भी किसी ने ये सोंचा नहीं, क्यों मै अकेला छाओं में धुप सेक रहा था, मेरा दुखद अंत आज नहीं, पहले का मै निर्जीव सा विचलित, देख रहा था........ "अनुज" ©Anuj #मनोस्थिति #nojohindi