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खुशियों के फूल ख्वाहिश थी जिसकी , वो हमको मिले न

खुशियों के फूल 

ख्वाहिश थी जिसकी , वो हमको मिले नहीं । 
और अब जिंदगी से हमें कोई शिकवे-गिले नहीं। 

 दिए है वक्त, हालात , ज़माने और तुमने , 
बन गए हैं नासूर, मगर हमने घाव सिले नहीं। 

भुला दिया है उस हर इक शख़्स ने हमको, 
जिसने मोहब्बत तो की मगर कभी आकर मिले नहीं। 

बोए थे हमने, अपने आंगन में पौधे खुशियों के,  
खाद डाली भरोसे की, पानी डाला प्यार का , 

पता नहीं "शमी" क्यों , उनमें कभी फूल खिले नहीं।

©" शमी सतीश " (Satish Girotiya)
  #फूल_खुशियों_के।

फूल_खुशियों_के। #Poetry

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