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गुज़र रहे दिन, तूफ़ाँ मन में उठ रहे। ना हासिल हो

गुज़र रहे दिन, 
तूफ़ाँ मन में उठ रहे। 
ना हासिल हो रही मंजिल मेरी, 
बस पैरों में कांटे चुभ रहे। ।
सिसक रही सारी तालीम बैठ इक कोने में, 
ता उम्र लगा दी जिस चाह में, 
आँखे मुकर रही अब रोने में। ।
उम्र ढल रही, 
माथे पे शिकन बढ़ रही,,
अट्टहास कर रही बंद किताबें, 
बेबस हो चुकी जिंदगी अब तो, 
किस्मत अलग कहानी गढ़ रही। ।
पग _पग नई चुनौतियों का दौर जारी है, 
खुशियों के पैमाने पर सितम भारी है। 
दबा जा रहा जिम्मेदारियों के बोझ तले, 
जन्म ले चुकी नई बीमारी है। ।
written by 
संतोष वर्मा। ।azamgarh वाले 
खुद की जुबानी। ।

©Santosh Verma
  टेंशन। ।

टेंशन। । #कविता

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