White बाज़ार की चहल पहल देखने मे दिन ग़ुजर जाता हैँ मेरा किसी तरह मंदिरो मे जाकर माथा टेकने की मेरे पास फुरसत हैँ कहा ? ये मेहरबानी हैँ उस पर्वरदिगार की कि उसने. मुझे जीने का अवसर नवाज़ा हैँ वरना इस तगदिल दुनिया मे खुदक्शी करने की जगह बची हैँ कहा? ©Parasram Arora जगह बची हैँ कहा?