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अपनी कुछ अधूरी ख्वाहिशों को समेटें निकल पड़ा हूं, अ

अपनी कुछ अधूरी ख्वाहिशों को समेटें निकल पड़ा हूं,
अपने इस साये को सहारा बना बढ़ चला हूं,
मंज़िल की तलाश में या खुद कि पता नहीं बस इन रास्तों पे निकल चला हूं,

कभी कभी तो साया भी साथ छोड़ जाता है ,
जब वो खूबसूरत सा चाँद निकल आता है,
मगर इतना यकीं तो ज़रूर दिला जाता है 
सूरज की पहली किरण पे वो हमसफ़र लौट जो आता  है,

कितने अपने पीछे छूटते चले जा रहे हैं इसका अंदाज़ा भी नहीं है
मगर नए चेहरों की ताक में तू बढ़ा चला जा रहा है, 
मंज़िल का पता नही फिर भी सफर तो सुहाना है, 
बस इसी आस में तू चला जा रहा है
खुद से मिलने को बढ़ा जा रहा है

देखते देखते तोह सभी को मौत के घाट उतर ही जाना है,
मगर वो अन्त भी हसिन होगा अगर तेरा ये सफर सुहाना है,
‌अगर तू खुद से मिल गया तो तुझ पर पूरी दुनिया को यकीन हो ही जाना है,
‌मगर तेरा जो ये खुद पे यकीन है तुझे उसे न गवाना है
बस इसी आस में तुझे चलते चले जाना है
खुद से मिलने को बढ़ते चले जाना है 

- शुभम मिश्र मैं
trying to put forth my understanding of life ..
अपनी कुछ अधूरी ख्वाहिशों को समेटें निकल पड़ा हूं,
अपने इस साये को सहारा बना बढ़ चला हूं,
मंज़िल की तलाश में या खुद कि पता नहीं बस इन रास्तों पे निकल चला हूं,

कभी कभी तो साया भी साथ छोड़ जाता है ,
जब वो खूबसूरत सा चाँद निकल आता है,
मगर इतना यकीं तो ज़रूर दिला जाता है 
सूरज की पहली किरण पे वो हमसफ़र लौट जो आता  है,

कितने अपने पीछे छूटते चले जा रहे हैं इसका अंदाज़ा भी नहीं है
मगर नए चेहरों की ताक में तू बढ़ा चला जा रहा है, 
मंज़िल का पता नही फिर भी सफर तो सुहाना है, 
बस इसी आस में तू चला जा रहा है
खुद से मिलने को बढ़ा जा रहा है

देखते देखते तोह सभी को मौत के घाट उतर ही जाना है,
मगर वो अन्त भी हसिन होगा अगर तेरा ये सफर सुहाना है,
‌अगर तू खुद से मिल गया तो तुझ पर पूरी दुनिया को यकीन हो ही जाना है,
‌मगर तेरा जो ये खुद पे यकीन है तुझे उसे न गवाना है
बस इसी आस में तुझे चलते चले जाना है
खुद से मिलने को बढ़ते चले जाना है 

- शुभम मिश्र मैं
trying to put forth my understanding of life ..