कभी नकभी तो वो हमेँ मिलेगा ज़रूर पूछूगा उससे जन्म दिया है तो हमेँ ढंग से पालता क्यों नही है ज़ो क़र्ज़ हमारे बुजुर्गो ने लिये थे दिवंगत होने से पहले वो करजे हमसे आज तक उतरे नही है किश्ती को अब मझधार की तरफ हमने मोड़ दिया है इतना आगे बड़ जाने के बावजूद किश्ती को गहराई. मिली नही है मौसम की मार ने इस शजर को नँगा कर दिया है हर शाख सूनी है और कोई परिंदा भी उस पर उतरता नही है कागज़ के फूलों से अपना गुलदान सजा रहे हो इतनी सज़ावट के बावजूद कोई तितली इधर आई नही. है ©Parasram Arora कभी न कभी तो #Sunrise