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अब ना जाने कब सवेरा हो, शाम होने वाली है फिर अँधे

अब ना जाने कब सवेरा हो, 
शाम होने वाली है फिर अँधेरा हो,

मेरे अंजुमन से झांकती क़मर को,
फिर ना जाने किस उफ़्ताद ने घेरा हो,

तेरी ख़लिश रहती है क़ल्ब में मेरे,
अब ना जाने कब इल्लत का सवेरा हो,

तेरे इश्फ़ाक़ से इस्तीफा दे दिया है,
अब ना जाने इश्तियाक़ का कब बसेरा हो,

मेरी इबादत को समझा इब्तिला मेरा,
अब ना जाने इस इमान का कब सवेरा हो.. 

आपका अपना दोस्त। .. 
तनहा शायर हूँ-यश














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©Tanha Shayar hu Yash
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