बूढ़े बाबा 👇 कविता नीचे अनुशिर्षक में पढ़े लाठी थामे बड़े सयाने लगते थे वो बूढ़े बाबा हाँ मुहँ में कोई दांत नही था अंग पर कोई मांस नहीं था फिर भी न जाने कैसे चलते वो बूढ़े बाबा धोती कुर्ता वेश वहीं था गाँव का आंगन, गांव की मिट्टी उनका पूरा देश यहीं था