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बूढ़े बाबा 👇 कविता नीचे अनुशिर्षक में पढ़े ल

बूढ़े बाबा 

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कविता नीचे अनुशिर्षक में पढ़े लाठी थामे बड़े सयाने
 लगते थे वो बूढ़े बाबा
हाँ मुहँ में कोई दांत नही था
अंग पर कोई मांस नहीं था 
फिर भी न जाने कैसे चलते वो बूढ़े बाबा
धोती कुर्ता वेश वहीं था
गाँव का आंगन, गांव की मिट्टी
 उनका पूरा देश यहीं था
बूढ़े बाबा 

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कविता नीचे अनुशिर्षक में पढ़े लाठी थामे बड़े सयाने
 लगते थे वो बूढ़े बाबा
हाँ मुहँ में कोई दांत नही था
अंग पर कोई मांस नहीं था 
फिर भी न जाने कैसे चलते वो बूढ़े बाबा
धोती कुर्ता वेश वहीं था
गाँव का आंगन, गांव की मिट्टी
 उनका पूरा देश यहीं था