वो पागल समझते रहे है मुझे,उसमे उनका कसूर नही है, क्या है कि किस्सा इश्क़ का,उनका इतना मशहूर नही है। चलते चलते थक जाते है लोग, अक्सर सही रास्तों पर, जाओ उन्हें बता दो कि उनकी मंज़िल ज्यादा दूर नही है। सच्चे आशिक़ को वफ़ा में अक्सर बेवफ़ाई ही मिलती है, मुहब्बत में आज भी वफ़ा हर किसी को मंजूर नही है। चाहो उसे एकतरफा जी भर के बिना उसके इजाजत, इश्क़ को अंजाम देने के लिए इतना ही भरपूर नही है। मुझे देखते ही गली में, दरीचों के पर्दो को खींच लेना, अमा फ़लसफ़े इश्क़ का तो ये बिल्कुल दस्तूर नही है। भीड़ ने फैसला कर लिया, मुझे उनकी गली में देखकर, चलो माना मेरा कसूर है ये, पर वो भी तो बेकसूर नही है। अमित पांडेय,डूंगरपुर #veins