ये तेरे जुल्म की सजा हैं। ज़ब वों तेरे बेटे क़ो सताएगी, फ़िर उसे नींद नहीं आएगी...। तू पूछेगी बेटे,सें क़्या हुआ हैं, यह सोच क़र तू भी क़्या ख़ूब पछ्तायेगी। फ़िर तू मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे जाएंगी, ख़ुदा पर भी तू क़्या ख़ूब चिल्लायेगी, ये क़्या हुआ,ये कैसे हुआ, ये क़्या इंसाफ हैं। कंटिन्यूस... ©विवेक कुमार मौर्या (अज्ञात ) अल्फाज़.40