पता नहीं कहाँ चले जा रहे हैं ! यूँ ही कदम उठाए जा रहे हैं पता नही कहाँ चले जा रहे हैं दुसरो का बोझ हमारे कंधो पर मढ़ा है तो उनको ही ढोते जा रहे है सबको खुशियाँ बाँटे जा रहे है खुद के आशियाने विरासत का रूप ले रहे है बचपन में कुछ लक्ष्य गढ़े है अब हम उनको खोजे जा रहे है यूँ ही कदम उठाए जा रहे हैं पता नही कहाँ चले जा रहे है खुद को प्रतिष्ठित करने के स्वप्न रचे है आज उन्ही सपनो को हवा देने जा रहें है #पता नही कहाँ चले जा रहे हैं