जिंदगी एक लम्बा सफऱ और मौत हमारी मंजिल है ये भी सच है कि अमृत एक ख्वाब और जिंदगी एक ज़हर है ज़िंदा हैँ हमफिर भी इस दुनिया मे किसका ये असर है इतना जहर पिलाया जिंदगी ने फिर भी ये बेअसर है कितना मुश्किल यहां पता लगाना कौन अपना कौन पराया है अपने मुझसे डरते हैँ जबकि अपनों का ही मुझ पे कहर है कितना दूर है किनारा मेरी जिंदगी क़े सफऱ का घंचक्कर की तरह घूम रहा सब तरफ भंवर ही भंवर है सब तरफ यहाँ जुल्म और रंजिश को दौर दिख रहा जिस तरफ देखिये उजड़ा हुआ नगर है ©Parasram Arora उजड़ा हुआ नगर.......