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जितनी बार भी बाँधे पुल सपनों के , एक पल में चकनाचू

जितनी बार भी बाँधे पुल सपनों के ,
एक पल में चकनाचूर हुए,
बचाने   रिश्तों  का  गहन समन्दर ,
हम अपने  हर सपनें से दूर हुए,
क़दमों को पँख ना दे पाए ,
बस चलते रहे सिसक सिसक कर,
ज़माने की रवायतों से डरकर ,ना जाने क्यूँ मजबूर हुए,
आहों में दिन गुज़रते थे,और सिसकियों के साथ रात आती,
सारेे अरमान-ओ-ख़्वाब ज़िन्दगी 
के,रंज-ओ-गम से चूर हुए ,
वक़्त ने करवट बदली और मुरझाए सपनें फ़िर मुस्कुराए,
एक उम्मीद और विश्वास  से ,मेरे सपनें फ़िर मगरूर हुए,
वो पुल सपनों का अब हमें पार करना था,
जब ख़्वाबों ने भरी उड़ान ,तो मेरे डर  सारे काफ़ूर हुए,
मालूम नही था ,मिलेगा एक ऐसा आसमान भी,
इस लम्हे को जीकर ,मेरे सपने कोहिनूर हुए।।
-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
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