ज़िन्दगी मुझे तमाशबीन सी खड़ी देखती रही, और मैं खुद से जिरह भी न कर पाया इतना बेबस मैं था या वो जो मैं खुद से सवालात ना कर पाया?? मौत का मौन लिए कठपुतली सी ताकती रही मैं रूह को रात भर, कि जी भर खुद की बेबसी का दर्पण देखता रहा.... चित्त मन, धुंधले पड़े स्वप्न, ज़िन्दगी ऐसे ही मुझे तमाशबीन सी खड़ी देखती रही..... #OpenPoetry