असुरक्षित है अस्तित्व... अनिश्चित है जिंदगी एक प्रवाह है जिंदगी सब कुछ सरक रहा प्रतिपल सब कुछ रूपांतरित हो रहा प्रतिपल लेकिन तुम्हे ये संसार अजनबी लगता है तों इसमें भयभीत होने वाली कोई बात नहीं है तुम्हें तो जाना है आगे और आगे मत देखना पीछे मुड़ कर यही अनिचितता सौन्दर्य बन जाने वाली है एक दिन मृत्यु भी आएगी मुआफ़ी मांगेगी और लौट जायेगी एकदिन बिना रोडमैप के चलने का अभ्यास कर लो सारे आदर्श और अनुशासन के बोझ क़ो भी उतार फेंको अच्छा होगा तुम नदी के साथ बहना सीख लो. ये नदी ही तुम्हे सागर के दूसरे किनारे तक पहुंचाने मे सक्षम होगी निश्चित ही तालमेल बैठने लगेगा तुम्हारा अनिशचितता से और असुरक्षा से एक दिन ©Parasram Arora अनिश्चित और असुरक्षित जीवन