मुझे उस परिंदे से बेइंतहा मुहब्बत हो गई थी जिसेमैंने अपनी ख़ुशी के लिये उसे पिंजरे सहित खरीद कर घर के आँगन में लटका दिया था नित्य उससे बाते करता और उसकी मधुरतम चहकते गीतों को सुनकर आत्मविभोर हो जाता था . फिर वो दिन भी आया ज़ब मेरी आँख आकाश में उड़ते परिंदो पर पड़ी ज़ो पूरी मस्ती से चहकते हुए आकाश की ऊंचाईया नाप रहे थे तब मुझे अहसास हुआ कि.उन मुक्त स्वच्छन्द परिंदो की च हकने की त्वरा और मिठास मेरे पिंजरे वाले परिंदे से. कितनी अलग थी और तब मुझे समझ में आया कि प्यारऔर ख़ुशी बँधन में नही है प्यार और ख़ुशी मुक्ति और स्वछंदता की उपज हैँ ©Parasram Arora पिंजरे का परिंदा