हम उन्हें चाहते रहे दिवानों कि तरह। वह हमें अनदेखा कर रहे हैं नफरतों की तरह। हम उनसे हर बात पर बात करने का बहाना ढूंढते हैं। और वह हम से पीछा छुड़ाने का हुनर खोजते हैं। काश वो हमें और हमारे एहसासों को समझते। तो इस तनहाई में जी ते जी हम ना मरते। क्या बंधन क्या "आशीष" क्या है प्यार कि सीमा। कब पूरे होते हैं किसी के दिल के अरमा। मेरी मायूसी का पैमाना नहीं हां यह सच है सच्ची मोहब्बत का जमाना नहीं। हमारी मोहब्बत को वो खेल समझते रहे फिल्मों कि तरह। हम उन्हें चाहते रहे दीवानों कि तरह!! आशीष पाण्डेय (दिल कि आवाज)🙏 हम उन्हें चाहते रहे दीवानों की तरह