जीवन मे हमारे कई दुख वृहदआकार क़े होते है जो हमें रुलाते भी हैँ उलझाते भी है लेकिन ज्यादातर दुख सूक्ष्म रूप मे ही आते है जो रुलाते तो नहीं लेकिन क्रोध और तनाव आदि को आने से रोक नहीं पाते. हैँ जैसे दाल चावल खाते हुए मुँह मे कंकड़ का आ जाना........ रोटी क़े किसी निवाले मे गृहणी क़े बाल का आ जाना...... या फिऱ दाल सब्जी मे नमक का ज़्यदा होना और कभी कभार किसी उत्पाती मच्छर की मृत देह का किसी तरी वाली सब्जी मे आ जाना... इन लघु दुखों क़े लिए हमें कई बार वृहद ग़ुस्से को देखा जा सकता है और फलस्वरूप परोसी हुई थाली को उठा कर फैंक देने. का प्रतिकार भी हमसे हो जाता है ©Parasram Arora दुखों की संरचना........