उड जा ओ परिन्दें ढूंढ ले कोई और ठिकाना शिकारियों के शहर में मुश्किल है तेरा रह पाना मुफ़लिस रहते है इस शहर में बच के निकल जा यहाँ प्यार नहीं करता कोई सम्भल के निकल जा दर्द ही दर्द मिलता है इस शहर में कोई हमदर्द नहीं बेगानें शहर में नहीं रहता यहाँ कोई तेरा हमसफ़र चिल्लाने से तेरे कोई समझेगा नहीं उड जा और कही पंख उखाड़कर फैंक देंगे तेरे तडपता रहेंगा फिर तू यही मत ढूंढ इस शहर में अपनें लिऐ कोई ठिकाना बेमुरब्बत दुनियाँ छीन लेगी बना बनाया आशियाना ©Mukesh Tyagi उड जा ओ परिन्दें ढूंढ ले कोई और ठिकाना