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कठिन डगर पर चलता साथी, कठिन डगर पर छूट गया। जीवन न

कठिन डगर पर चलता साथी,
कठिन डगर पर छूट गया।
जीवन नैया पार लगाता,
बीच में साथी टूट गया।

खेवनहार बन कर आया था,
थाम ली उसने थी पतवार।
ज्वार-भाट से निकल चलेंगे,
कठिनाई को दी ललकार।

उठने लगा जैसे ही जल-जल,
लगा कूदने नाव से।
मैंने उसको रोकना चाहा,
नहीं रुका वो ताव से।

जनम-मरण को उसने न जाना,
सुख-दुःख को न पहचाना।
आज विलोपित हो गया वो,
सिर्फ रह गया वो अफ़साना।

जीवन को उसके सुरक्षित करने,
मैंने कर लिया था दृढ़ प्रण।
ज्वार-भाट की ऊंची लहरों से,
हार गया जीवन का रण।

ऋषि रघुवीर भटनागर "चित्रांश" #kathindagar #sathi #rishichitransh #shayarchitransh
कठिन डगर पर चलता साथी,
कठिन डगर पर छूट गया।
जीवन नैया पार लगाता,
बीच में साथी टूट गया।

खेवनहार बन कर आया था,
थाम ली उसने थी पतवार।
ज्वार-भाट से निकल चलेंगे,
कठिनाई को दी ललकार।

उठने लगा जैसे ही जल-जल,
लगा कूदने नाव से।
मैंने उसको रोकना चाहा,
नहीं रुका वो ताव से।

जनम-मरण को उसने न जाना,
सुख-दुःख को न पहचाना।
आज विलोपित हो गया वो,
सिर्फ रह गया वो अफ़साना।

जीवन को उसके सुरक्षित करने,
मैंने कर लिया था दृढ़ प्रण।
ज्वार-भाट की ऊंची लहरों से,
हार गया जीवन का रण।

ऋषि रघुवीर भटनागर "चित्रांश" #kathindagar #sathi #rishichitransh #shayarchitransh