हाँ , हूँ मैं इस क्षण, इक अदना सा कण, ये जो सामने दिख रहा है रण, लिए हाथों में हथियार वजनी है जो मण दो मण, अब बज चुकी है रणभेरी, बन तू भीषणं, विभीषण या फिर भीष्म, हैं तेरे इर्द गिर्द जो ये गिद्ध करने को उनको पूर्णत भस्म, क्यूँ कि, ये कण अब कण-कण में समाने को है, इस ज़माने से ये भीरु रूपी वजन हटाने को है ... ...प्रीत myquote