2212 121 1 221 212 राहत से जाम भरता है हम जाम पीते हैं शाम-ओ-सहर से टूटके हम शाम पीते हैं तुझसे ख़फ़ा नहीं रह सकता जिगर मेरा ये ज़िंदगी हुई हम बेशर्म पीते हैं मैं मरता हूँ तुझी पे तु मरता है मुझ पे ही इक तेरे इक मेरे इक हम नाम पीते हैं दुख ज़िंदगी के कितने हैं तू जानता तो है तो इ सलिए तुझे हम आवाम पीते हैं दुनियाँ ने मार डाला तु भी मार डाल ही पहली नज़र का पहले से हम जाम पीते हैं ये इश्क़ का"ज़ुबैर" मज़ा कुछ ही एसा है चाहे नहीं भी हो हम बदनाम पीते हैं लेखक - ज़ुबैर खान.....✍️ ©SZUBAIR KHAN KHAN Jaam