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निज विकास हेतु आवश्यक हैं, संरक्षण एवम् वर्धन : अप

निज विकास हेतु आवश्यक हैं,
संरक्षण एवम् वर्धन : अपने सद्गुणों का
परित्याग एवम् सुधार : अपने विकारों का
स्वीकार एवम् अर्जन : औरों की अच्छाईयों का
निराई एवम् विसर्जन : अर्जित नकारत्मकता का
और यह संभव है, जब हम सजगता से करते हैं
नित्य अवलोकन अपने मन में चलते विचारों का ।
 मन का सजग अवलोकन
निज विकास हेतु आवश्यक हैं,
संरक्षण एवम् वर्धन : अपने सद्गुणों का
परित्याग एवम् सुधार : अपने विकारों का
स्वीकार एवम् अर्जन : औरों की अच्छाईयों का
निराई एवम् विसर्जन : अर्जित नकारत्मकता का
और यह संभव है, जब हम सजगता से करते हैं
नित्य अवलोकन अपने मन में चलते विचारों का ।
 मन का सजग अवलोकन