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इस कदर टूट जायेंगे, मालूम न था। इस कदर रूठ जायेंगे

इस कदर टूट जायेंगे, मालूम न था।
इस कदर रूठ जायेंगे, मालूम न था।।
मंजिलें राहों की, मोहताज हैं ।
खुद उलझ जायेंगे, मालूम न था।।
कई सुर मिलाये और स्वर दे दिया।
भाषा की जमीं पर ग़ज़ल दे दिया।।
हर लम्हा जिंदगी को ऊँचाई दीं ।
खुद फिसल जायेंगे, मालूम न था।।
आज के दौर में गम की बातें न कर।
बहारों की राहों में,खिंजा से न डर।।
हर दौर आकर, चला जायेगा ।
हम खुद ठहर जायेंगे, मालूम न था।।

©Shubham Bhardwaj
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