White नजरें ना मिली अबतलक मुकद्दर से तो क्या, भगवान के चौखट पर रहने इंतजाम हो गया। वक्त तन्हाईयों में बीतकर कल शाम हो गया, बचते रहा ता उम्र सरीफी में मेरा नाम हो गया। अब यह जीद्द है कि किसी का मरहम बनूंगा, सबके नजर में हिमाएते- ए- सरेआम हो गया। चिराग जल गये अंधेरो में रास्ता दिखाई देता है, आज उनका मिलना जुलना खुलेआम हो गया। -----------संतोष शर्मा(कुशीनगर) दिनांक-27/10/2024 ©santosh sharma #san poetry