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प्रेम के इस जगत मे न जाने कितने विस्तार है. न जा

प्रेम के इस जगत मे न जाने  कितने 
विस्तार है. न जाने इसके कितने विविध रूप है  और इसे सब ने अपने अपने हिसाब से जीवन मे  अहसास किया है
जैसे  वातसल्य.. ममत्व   अनुराग  स्नेह  मित्रता  भक्ति पूजा  भजन  कीर्तन ध्यान
अहीभाव और समर्पन्न..... इन सबमे  एक तत्व  कोमन है वो है प्रेम

©Parasram Arora
  प्रेम के विविध रूप

प्रेम के विविध रूप #कविता

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