साथ चलने का निर्णय तुम्हारा था, और स्वेच्छा से था। किन्तु साथ चलने भर से हर चीज साझा नहीं हो जाती। न ही कोई अधिकार सुनिश्चित होता है। सबकी अपनी राह,अपनी चाहतें हैं। राह आम भी हो सकती है,और राह में मिलने वाला हर राही, हमराही भी।अपने कर्म और इच्छा से सबने अपने लिए कुछ अरजा है, और जिसको जो मिला , वही उसका अधिकारी है। तुम उसकी समृद्धि देख कर खुश हो लो वही तुम्हारी समृद्धि है, जो तुम पकड़ने लगे तो बंध जाओगे, बांधने का प्रयास करोगे तो खुद उलझने लग जाओगे। राह में संग चलो,समानांतर बहो, संबंध का सौंदर्य इसी में है, क्षितिज की कल्पना में ही आनन्द है। #yqdidi #कथांश #भावांश