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उसके बालो से खुसबू आती थी जब हवा बहकर उसके बालो से

उसके बालो से खुसबू आती थी जब हवा बहकर उसके बालो से निकलने वाले सुंगन्ध को मेरी और खिंचती थी
और मैं आंखे बंद करके उसे महसूस करता था । सच बताऊ तो पल भर के लिये किसी अलग दुनिया मे ही पहुँच जाता था जैसे कलियों के बगीचों में आह कितनी सुंगंधित !
      कई बार उसकी जुल्फें हवा के झोको के साथ उसके चेहरों को ढक लेती थी और फिर उसका चिढ़ जाना । वो परेशान भी होती थी तो कितनी खूबसूरत लगती थी । वो बार बार बालो को समेट कर जुड़ा बनाती और उसके केशो को उसको फिर से छेड़ना ।
रह रह कर  खुल जाते थे और वो फिर चिढ़ जाया करती बिल्कुल मासूम बच्चे की तरह ।
वो हमेसा मुस्कुराती रहती थी  बिना किसी बजह के।  र उसके चेहरे की रौनक थी उसके चेहरे की  मुस्कुराट जो दूसरों के चेहरे पर एक मीठी मुस्कान ला देती थी
       वो आज भी मुस्कुरा रही थी आज भी वो वही नीली साड़ी पहनी थी उसने , जब वो मुझसे पहली बार मिली थी । उसी ढावे में उसने जाने की जिद्द भी की जहाँ पहली बार उसके साथ बैठकर चाय पी थी । और मैं उसकी जिद्द के सामने हार गया हमेशा की तरह।
उस दिन कुछ  बोला नही उसने  बस मुझे देखती रही 
ये नही पता था मुझे की ये शाम और ये चाय की कप  उसके साथ आखरी होगी .......।

 उसके बालो से खुसबू आती थी जब हवा बहकर उसके बालो से निकलने वाले सुंगन्ध को मेरी और खिंचती थी
और मैं आंखे बंद करके उसे महसूस करता था । सच बताऊ तो पल भर के लिये किसी अलग दुनिया मे ही पहुँच जाता था जैसे कलियों के बगीचों में आह कितनी सुंगंधित !
      कई बार उसकी जुल्फें हवा के झोको के साथ उसके चेहरों को ढक लेती थी और फिर उसका चिढ़ जाना । वो परेशान भी होती थी तो कितनी खूबसूरत लगती थी । वो बार बार बालो को समेट कर जुड़ा बनाती और उसके केशो का उसको फिर से छेड़ना ।
रह रह कर  खुल जाते थे और वो फिर झुंझला उठती
उसके बालो से खुसबू आती थी जब हवा बहकर उसके बालो से निकलने वाले सुंगन्ध को मेरी और खिंचती थी
और मैं आंखे बंद करके उसे महसूस करता था । सच बताऊ तो पल भर के लिये किसी अलग दुनिया मे ही पहुँच जाता था जैसे कलियों के बगीचों में आह कितनी सुंगंधित !
      कई बार उसकी जुल्फें हवा के झोको के साथ उसके चेहरों को ढक लेती थी और फिर उसका चिढ़ जाना । वो परेशान भी होती थी तो कितनी खूबसूरत लगती थी । वो बार बार बालो को समेट कर जुड़ा बनाती और उसके केशो को उसको फिर से छेड़ना ।
रह रह कर  खुल जाते थे और वो फिर चिढ़ जाया करती बिल्कुल मासूम बच्चे की तरह ।
वो हमेसा मुस्कुराती रहती थी  बिना किसी बजह के।  र उसके चेहरे की रौनक थी उसके चेहरे की  मुस्कुराट जो दूसरों के चेहरे पर एक मीठी मुस्कान ला देती थी
       वो आज भी मुस्कुरा रही थी आज भी वो वही नीली साड़ी पहनी थी उसने , जब वो मुझसे पहली बार मिली थी । उसी ढावे में उसने जाने की जिद्द भी की जहाँ पहली बार उसके साथ बैठकर चाय पी थी । और मैं उसकी जिद्द के सामने हार गया हमेशा की तरह।
उस दिन कुछ  बोला नही उसने  बस मुझे देखती रही 
ये नही पता था मुझे की ये शाम और ये चाय की कप  उसके साथ आखरी होगी .......।

 उसके बालो से खुसबू आती थी जब हवा बहकर उसके बालो से निकलने वाले सुंगन्ध को मेरी और खिंचती थी
और मैं आंखे बंद करके उसे महसूस करता था । सच बताऊ तो पल भर के लिये किसी अलग दुनिया मे ही पहुँच जाता था जैसे कलियों के बगीचों में आह कितनी सुंगंधित !
      कई बार उसकी जुल्फें हवा के झोको के साथ उसके चेहरों को ढक लेती थी और फिर उसका चिढ़ जाना । वो परेशान भी होती थी तो कितनी खूबसूरत लगती थी । वो बार बार बालो को समेट कर जुड़ा बनाती और उसके केशो का उसको फिर से छेड़ना ।
रह रह कर  खुल जाते थे और वो फिर झुंझला उठती