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एक पुष्प आज सिसक रहा था ,अलग हुआ क्यूँ डाली से, म

 एक पुष्प आज सिसक रहा था ,अलग हुआ क्यूँ डाली से,
महक  रहा  था  चहक रहा था, वो माली की रखवाली से,

हाय ! क्यूँ समाज की बंदिशों  और  रस्मों में सिमट गया,
नीर भरे नयनों से वो , फ़िर उस   डाली   से  लिपट गया,

विरह  वेदना  भरी  हिय   में, प्यास मिलन की आँखों में,
रोये या ख़ुश होए , अजब  सी  असमंजस  थी  बातों में,

आज  छोड़  बचपन  की बगिया ,नए चमन की ओर चली,
माँ का आँचल ,लाड़ पिता का ,सखियों से मुँह मोड़ चली,

बना  बीज   सा   नए   चमन   में ,फ़िर से रोपीं जाएगी,
वो  खुशबू , वो नटखट  जीवन , फ़िर  से  न जी पाएगी।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
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