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पराये घर की चिडियाँ हैं - इन्हें छोड़ के ये घर उड़ ज

पराये घर की चिडियाँ हैं - इन्हें छोड़ के ये घर उड़ जाना है,
आज लक्ष्मी हैं इस घर की - कल घर दूसरा सजाना है।
बाबा की होती हैं प्यारी - और माँ की मीठी मुस्कान ये,
भाई से लडती रहती हैं - लेकिन होती हैं भाई की जान ये।
रोको मत इनको - ये तूफानों का रुख मोड़ सकती हैं,
मौका तो दो बेटियों को - ये हवाओं को भी पीछे छोड़ सकती हैं।

असल मायनों में हर घर की लक्ष्मी होती हैं बेटियाँ,
बाकी सबको बाद में पूजो, प्रथम पूज्यनीय हैं बेटियाँ।
माँ दुलराती हैं बचपन में - बेटी हमारा बचपन याद दिलाती है,
माँ ने खिलाया था कभी निवाला - बेटी भी वही प्यार जताती है।
होती हैं सूर्य के तेज जैसी - मेघ को भी निचोड़ सकती हैं,
मौक़ा तो दो बेटियों को - ये हवाओं को भी पीछे छोड़ सकती हैं।।

सहती रहती हैं ज़ुल्मों को - करती नहीं विरोध ये,
पी जाती हैं गुस्से को - करके खुद पर क्रोध ये।
इंसानों की इस दुनिया में - नहीं इन्सान इन्हें समझा जाता,
बलशाली होती हैं - पर नहीं बलवान इन्हें समझा जाता।
मत समझो कोमल इनको - हैं कठोर इतनी कि पर्वत को भी तोड़ सकती हैं,
मौका तो दो बेटियों को - ये हवाओं को भी पीछे छोड़ सकती हैं।।

खूब लड़ी मरदानी वो - झांसी वाली रानी भी तो एक बेटी थी,
अन्तरिक्ष में भारत माँ का परचम -
लहराने वाली भी तो एक बेटी थी।
ओलंपिक से अन्तरिक्ष तक - बेटों से पीछे कहाँ हैं बेटियाँ,
धरातल से आसमान तक - देश में नीचे कहाँ हैं बेटियाँ।
मत मारो अजन्मी इनको - ये बेटों के गुरूर को मरोड़ सकती हैं।
मौका तो दो बेटियों को - ये हवाओं को भी पीछे छोड़ सकती हैं।।
अजय यादव #बेटियां
पराये घर की चिडियाँ हैं - इन्हें छोड़ के ये घर उड़ जाना है,
आज लक्ष्मी हैं इस घर की - कल घर दूसरा सजाना है।
बाबा की होती हैं प्यारी - और माँ की मीठी मुस्कान ये,
भाई से लडती रहती हैं - लेकिन होती हैं भाई की जान ये।
रोको मत इनको - ये तूफानों का रुख मोड़ सकती हैं,
मौका तो दो बेटियों को - ये हवाओं को भी पीछे छोड़ सकती हैं।

असल मायनों में हर घर की लक्ष्मी होती हैं बेटियाँ,
बाकी सबको बाद में पूजो, प्रथम पूज्यनीय हैं बेटियाँ।
माँ दुलराती हैं बचपन में - बेटी हमारा बचपन याद दिलाती है,
माँ ने खिलाया था कभी निवाला - बेटी भी वही प्यार जताती है।
होती हैं सूर्य के तेज जैसी - मेघ को भी निचोड़ सकती हैं,
मौक़ा तो दो बेटियों को - ये हवाओं को भी पीछे छोड़ सकती हैं।।

सहती रहती हैं ज़ुल्मों को - करती नहीं विरोध ये,
पी जाती हैं गुस्से को - करके खुद पर क्रोध ये।
इंसानों की इस दुनिया में - नहीं इन्सान इन्हें समझा जाता,
बलशाली होती हैं - पर नहीं बलवान इन्हें समझा जाता।
मत समझो कोमल इनको - हैं कठोर इतनी कि पर्वत को भी तोड़ सकती हैं,
मौका तो दो बेटियों को - ये हवाओं को भी पीछे छोड़ सकती हैं।।

खूब लड़ी मरदानी वो - झांसी वाली रानी भी तो एक बेटी थी,
अन्तरिक्ष में भारत माँ का परचम -
लहराने वाली भी तो एक बेटी थी।
ओलंपिक से अन्तरिक्ष तक - बेटों से पीछे कहाँ हैं बेटियाँ,
धरातल से आसमान तक - देश में नीचे कहाँ हैं बेटियाँ।
मत मारो अजन्मी इनको - ये बेटों के गुरूर को मरोड़ सकती हैं।
मौका तो दो बेटियों को - ये हवाओं को भी पीछे छोड़ सकती हैं।।
अजय यादव #बेटियां
yadavajay6171

Yadav Ajay

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