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क्यों ज़िंदगी में ऐसे फ़ैसले कर रखे हैं, क्यों इतन

क्यों ज़िंदगी में ऐसे फ़ैसले कर रखे हैं,
क्यों इतने बंधन पाल रखे हैं।
इतनी लानतें बर्दाश्त करते हैं हम,
जो हमारी इज़्ज़त पर रोज़ हमला करती है।
रोज़ जूता मारती है ज़िंदगी मुँह पर,
फिर भी हम उसे ख़ामोशी से सहते जाते हैं।

©नवनीत ठाकुर #क्यों बंधन पाल रखें हैं
क्यों ज़िंदगी में ऐसे फ़ैसले कर रखे हैं,
क्यों इतने बंधन पाल रखे हैं।
इतनी लानतें बर्दाश्त करते हैं हम,
जो हमारी इज़्ज़त पर रोज़ हमला करती है।
रोज़ जूता मारती है ज़िंदगी मुँह पर,
फिर भी हम उसे ख़ामोशी से सहते जाते हैं।

©नवनीत ठाकुर #क्यों बंधन पाल रखें हैं